लगता है कि..
"मातोश्री" का रास्ता अब "माताश्री" (सोनिया गांधी) की ओर मुडता नज़र आ रहा है.. क्योंकि शिवसेना के नेता आज सोनिया गांधी की सपथ खा रहे हैं..
(यानि कि "माताश्री" के आगे आज "पिताश्री" के आदर्श और मुल्यों की कोई अहमियत नहीं रही)
याद रहे की..
सत्ता की गलीयारो से दुर रहने के बाद भी देश की राजनीति में..बाला साहब का अपना एक रुतबा था..
केन्द्र में चाहे किसी की भी सरकार हो लेकिन उन्हो ने दिल्ली दरबार में कभी सलाम नवाजी नही की..
सत्तापक्ष हो या विपक्ष..जो भी हो उन्हें मातोश्री में जाकर अपनी मौजूदगी दर्ज करानी पडती थी..
लेकिन दुख की बात है कि उनके उत्तराधिकारी आज सत्ता लालसा के चक्कर में अपनी मूल विचारधारा और निती से भटक चुके है.और अपने स्वभिमान का सौदा कर के दर दर भटक रहे हैं...
लेकिन याद रहे की..
कांग्रेस के चक्कर में जो हाल लालू.. सपा.. मायावती.. कुमार स्वामी और चंद्रबाबू नायडू का हूआ है वही लाइन में आपको अब शिवसेना भी खडी़ नजर आऐगी..
यानि.. अपने स्वभिमान का सौदा कर के सत्ता का मौका तलाश रही शिवसेना.. अगले चुनाव में अपना वजूद तलाशती नजर आऐगी..
"मातोश्री" का रास्ता अब "माताश्री" (सोनिया गांधी) की ओर मुडता नज़र आ रहा है.. क्योंकि शिवसेना के नेता आज सोनिया गांधी की सपथ खा रहे हैं..
(यानि कि "माताश्री" के आगे आज "पिताश्री" के आदर्श और मुल्यों की कोई अहमियत नहीं रही)
याद रहे की..
सत्ता की गलीयारो से दुर रहने के बाद भी देश की राजनीति में..बाला साहब का अपना एक रुतबा था..
केन्द्र में चाहे किसी की भी सरकार हो लेकिन उन्हो ने दिल्ली दरबार में कभी सलाम नवाजी नही की..
सत्तापक्ष हो या विपक्ष..जो भी हो उन्हें मातोश्री में जाकर अपनी मौजूदगी दर्ज करानी पडती थी..
लेकिन दुख की बात है कि उनके उत्तराधिकारी आज सत्ता लालसा के चक्कर में अपनी मूल विचारधारा और निती से भटक चुके है.और अपने स्वभिमान का सौदा कर के दर दर भटक रहे हैं...
लेकिन याद रहे की..
कांग्रेस के चक्कर में जो हाल लालू.. सपा.. मायावती.. कुमार स्वामी और चंद्रबाबू नायडू का हूआ है वही लाइन में आपको अब शिवसेना भी खडी़ नजर आऐगी..
यानि.. अपने स्वभिमान का सौदा कर के सत्ता का मौका तलाश रही शिवसेना.. अगले चुनाव में अपना वजूद तलाशती नजर आऐगी..