रविवार, 8 अप्रैल 2018

भगवान राम कि माया और कांग्रेस

माया

पंचवटी में जब भगवान राम ने अकेले ही खर दूषण का सेना समेत सँहार कर दिया तो रावण समझ चुका था कि राम कोई साधारण मानव नही हैं। परंतु उसे अपनी नाभी में स्तिथ अमृत पर और स्वयं के पराक्रम पर बहुत अभिमान था। साथ ही वह राम को भगवान मानने में शंका कर रहा था। उसे लंका की अभेद सुरक्षा और सौ योजन समुद्र की खाई पर भी अभिमान था जो किसी मानव के लिये लांघना असंभव थी



रावण ने छल से माता सीता का हरण कर लिया और यह प्रतीक्षा करने लगा कि राम अगर भगवान हैं तो वह अवश्य किसी दैवीय शक्ति का सहारा लेकर ही लंका में पहुंचेंगे ! लेकिन राम ने रावण की धारणा को ध्वस्त करके मानव निर्मित सेतु विशाल सागर पर बांध दिया! रावण फिर भगवान की धारणा पर शंकित रहा। युद्ध मे जब रावण को लगा कि राम नर नही नारायण हैं तभी लक्ष्मण को शक्ति आघात लगा और रावण फिर राम को साधारण मानव मान बैठा!   जब कुम्भकर्ण आदि योद्धा मारे गए तब रावण को फिर शंका हुई कि राम नर नही नारायण हैं तब भगवान नागपाश में बंध गए और रावण फिर उन्हें साधारण मानव मान बैठा! अंत मे जब रावण के सब योद्धा मारे गए तब रावण लंका को और स्वयं को बचाने हेतु राम की शरण का विचार करने लगा तभी प्रभु राम बंदी बनकर पाताल में अहिरावण के हाथों बलि स्थल पर बंध गए और रावण फिर उन्हें साधारण मानव समझ बैठा! जब रावण मरने लगा तब उसे राम के वास्तविक अस्तित्व का भान हुआ और वह चीख चीख कर 'श्रीराम श्रीराम' पुकारने लगा



यही वह श्रीराम की माया थी जिसने रावण जैसे वेदव्यक्ता को भी युद्ध उन्मुक्त भी रखा और समस्त राक्षस जाती का विनास करके भी समझ नही आई! वह जब भी राम को भगवान मानता कोई घटना ऐसी होती कि वह राम को साधारण मानव समझने लगता

लगता हैं भगवान राम कांग्रेस के साथ भी वही कर रहें हैं जब भी कांग्रेस सपा बसपा को लगता हैं उनका अस्तित्व खत्म हो गया हैं तभी वे एक दो उपचुनाव सीट जीत लेते हैं और फिर अपनी हार कराने फिर मैदान में चुनाव लड़ने उतर जाते हैं
कांग्रेस सपा बसपा भी बेइज्जत होकर रहेगी
हर बार बेइज्जत होगी
जब जब इन्हें लगता हैं हम खत्म हुए तब तब एक आध उपचुनाव सीट जीत लेंगी आगे बड़ी हार करवाने के लिये!

राम की माया राम ही जाने

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